शिवरात्रि के अवसर पर आदि बद्री नारायण मंदिर में स्थित केदारनाथ शिवरात्रि पर्व पर एक धार्मिक कार्यक्रम आयोजन किया गया। श्री आदि केदारनाथ मंदिर में सुबह तीन बजे से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया। शिव लिंग की पूजा अर्चना व जल अभिषेक कर पूरे विधि विधान से उनका श्रृंगार किया गया व यह कार्य राजेश्वर शास्त्री, देवकी नंदन शास्त्री, प्रेम शास्त्री के द्वारा पूरे विधि विधान से करवाया गया।
मंदिर के महंत राजेश्वर शास्त्री ने बताया कि आदि बद्री क्षेत्र में स्थित केदारनाथ शिव लिंग बहुत ही प्राचीन है धार्मिक दृष्टिï से इसका बहुत महत्व है। यहां शिवरात्रि व हर सोमवार को शिव की पूजा अर्चना करना व जल अभिषेक करना अधिक महत्व कारण है, इसका मुख्य कारण यह है कि इस आदि बद्री नारायण मंदिर में स्थित केदारनाथ शिव लिंग प्रतिदिन चार से छ ओस जल का ग्रहण करता है जिसके कारण इसकी महत्ता और आशीर्वाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है। महंत ने बताया कि शिवरात्रि के अवसर पर चारों पहर की पूजा के पश्चात आदि केदारनाथ का श्रृंगार करके जल हरि ओर घंटी को भोले नाथ के ऊपर लगा दी जाएगी। उन्होंने बताया कि देर शाम को भष्मांग आरती की जाएगी। उन्होंने बताया कि भगवान शिव की पूजा अर्चना से मानव जीवन में आने वाले सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। पूजा अर्चना करने से पूरा परिवार को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जिससे पूरे परिवार में सुख शांति व कुबेर देवता का वास होता है। इस मौके पर केदारनाथ मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन भी किया गया जो कि देर शाम तक चलता रहा । इस मौके पर आदि बद्री नारायण मंदिर व केदारनाथ मंदिर में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के द्वारा श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया।
*महा शिव का विशेष महत्व*
देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्री महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं। यह पर्व फाल्गुन कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हों, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं। महा शिव रात्रि के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व उँ नम: शिवाय का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं। व्रत के दूसरे दिन यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं।
*शिवरात्री व्रत की महिमा*
इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है, व इस व्रत को लगातार 14 वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन कर देना चाहिए.
*महाशिवरात्री व्रत का संकल्प*
व्रत का संकल्प सम्वत, नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम व गोत्रादि का उच्चारण करते हुए करना चाहिए। महाशिवरात्री के व्रत का संकल्प करने के लिये हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि सामग्री लेकर शिवलिंग पर छोड दी जाती है। इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में उँ नम: शिवाय व शिवाय नम: का जाप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं। चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है।
इस मौके पर मंदिर प्रागंण में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। जो कि देर शाम तक चलता रहा।